अमेरिका में पढ़ाई कर रहे रोहन की सुबह चाय की प्याली के साथ शुरू हुई। मगर आज उसकी आँखों में एक अलग ही उदासी थी। नवंबर की हवा में हल्की ठंड थी, लेकिन जो ठंड उसके दिल में थी, वह किसी और कारण से थी—बिहार में छठ पूजा की धूम!
वह अपने लैपटॉप स्क्रीन पर गंगा तट पर जलते हुए दीये और अर्घ्य देती महिलाओं की तस्वीरें देख रहा था। याद आया, कैसे हर साल उसकी माँ छठ पर्व के लिए घर को सजाती थीं, कैसे गाँव की गलियाँ ईख और केले के पत्तों से भर जाती थीं। अमेरिका के ऊँचे-ऊँचे इमारतों के बीच उसकी नज़रें अब भी उस छोटे तालाब को ढूंढ रही थीं जहाँ बचपन में वह दीया जलाने जाता था।
परदेश में रहते हुए भी रोहन ने ठान लिया कि छठ पूजा की भावना को अपने अंदर जीवित रखेगा। उसने कुछ दोस्तों को बुलाया, सूर्य देव की आराधना की, और ऑनलाइन बिहार कनेक्ट समूह से जुड़ गया। वहाँ उसने देखा कि बहुत से प्रवासी बिहारी मिलकर बिहार के विकास में योगदान दे रहे हैं—कोई शिक्षा में मदद कर रहा था, कोई स्वास्थ्य सेवाओं में, तो कोई गाँवों में बदलाव लाने की कोशिश कर रहा था।
उसने महसूस किया कि भले ही वह हज़ारों किलोमीटर दूर हो, पर उसके दिल की डोर हमेशा बिहार से जुड़ी रहेगी। छठ पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि उसे यह याद दिलाने का अवसर था कि जहाँ भी वह रहे, उसका योगदान बिहार को रोशन कर सकता है।
बिहार से दूर? फिर भी जुड़ें, क्योंकि जड़ों की पहचान ही असली शक्ति है!